properties-and-advantages-of-lubricants | स्नेहक के गुण व लाभ क्या है?

Properties of Lubricants ?

स्नेहक क्या है ? (What is Lubricants):

 

कार्यशाला में कई प्रकार की मशीनें प्रयोग में लाई जाती हैं। मशीन के चलने से इनके पास आपस में रगड़ खाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप इसके चर्षण से गर्मी उत्पन्न होती है जिसके कारण पार्टस कुछ फैल जाते हैं तथा जल्दी घिस जाते हैं, मशीन भारी चलने लगती है और आवाज़ भी आने लगती है। जिससे पार्ट्स जल्दी खराब हो जाते हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के चिकने माध्यम (ल्युब्रिकेंट और कूलेंट) प्रयोग में लाए जाते हैं। क्योंकि इन माध्यमों की पतली सी परत (Oil Film) मशीन के दोनों चलने वाले पार्ट के बीच यह ऑयल फिल्म बना देता है। जिससे दोनों संपर्क में आने वाली सतह आपस में रगड़ नहीं खाती।

अतः जो माध्यम इस कार्य के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें स्नेहक (Lubricants) कहते हैं। स्नेहक (Lubricant) प्रयोग करने की विधि को स्नेहन (Lubrication) कहते हैं।

 

 स्नेहक के लाभ (Advantages of Lubricants):

 

  1. स्नेहक के प्रयोग से मशीन की कार्य क्षमता बढ़ जाती है।
  2. मशीन हलकी स्मूथ तेज गति से चलती है।
  3. स्नेहक मशीन का जीवन बढ़ाता है।
  4. स्नेहक मशीन के चलने से घर्षण द्वारा उत्पन्न गर्मी को कम करता है।
  5. स्नेहक के प्रयोग से चलने वाले पार्ट कम घिसते हैं क्योंकि पार्ट्स के बीच में ल्युब्रिकेंट की एक पतली परत बन जाती है। जिससे पार्ट्स एक-दूसरे से सीधा संपर्क में नहीं आती।
  6. स्नेहक से पावर कम खर्च होती है।
  7. इसके प्रयोग से मशीन की शुद्धता (Accuracy) बनी रहती है।
  8. स्नेहक के प्रयोग से मशीन को जंग नहीं लगता है।

स्नेहन के प्रमुख उद्देश्य हैं:

स्नेहन सर्किट : सोश्ल मीडिया

 स्नेहक के गुण (Properties of Lubricants):

 

  1. तेलीयता (Oilyness) – यह तेल का वह गुण है जिससे तेल की एक पतली सतह (Oil Film) दो चलने वाले पार्ट्स में बनी रहती है। जिसके कारण सतह चिकनी रहती है।
  2. गाड़ापन (Viscosity)- इसके द्वारा तेल के गाढ़ेपन का पता लगता है। जितना तेल गाढ़ा होगा उतनी निस्कोसिटी अधिक होगी और जितना तेल पतला होगा उसकी विस्कोसिटी कम होगी तेल के इस गुण को नंबर द्वारा प्रकट किया जाता है जैसे S.A.E -30,   S.A.E -40 आदि। इसे विस्कोमीटर (Viscometer) से मापते है
  3. फ्लैश प्वाइंट (Flash Point)- यह ल्युब्रिकेंट का यह गुण है जिसमें ल्युब्रिकेंट एक विशेष तापमान पर भाप के रूप में परिवर्तित हो जाता है वह इसका फ्लैश प्वाइंट कहलाता है। प्रत्येक तेल का पलैश प्वाइंट अलगअलग होता है। इसलिए बियरिंग्स के लिए तेल चुनते समय चिरिंग के वर्किंग तापमान से तेल का फ्लैश प्वाइंट कम होना चाहिए। इससे आग लगने का भय नहीं रहता। 
  1. फायर प्वाइंट (Fire Point)- यह वह तापमान है जिस पर तेल की वाष्ण जलने लगती है और तेल आग पकड़ लेता है। यह तापमान फ्लैश प्वाइंट से 15 डिग्री से 20 डिग्री अधिक होता है अत: स्नेहक को चुनते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि स्नेहक का वर्किंग तापमान फ्लैश तथ अग्नि बिंदु से कम हो।
  2. बहाव बिंदु (Pour Point)- यह यह तापमान है जिस पर तेल ठंडे किए जाने के बाद गाढ़ा होकर बहना बंद कर देता है। इसका महत्व बर्फ बनाने बाली मशीनों, रेफ्रिजरेटर आदि के लिए रहता है।
  3. वाष्पीकरण (Amulsification)- अच्छे किस्म के तेल पानी में नहीं घुलते। जब तेल पानी के संपर्क में आता है तो उसे वाष्पीकरण कहते हैं। जैसे-स्टीम टरबाइन, स्टीम इंजन या हाईड्रोलिक टरचाइन आदि। 
  4. अम्लीयता (Acidity)- तेल में तेज़ाब की मात्रा नहीं होनी चाहिए। अगर होगी तो यह चिरिंग मैटल पर बुरा प्रभाव डालेगी।
  5. ऑक्सीडेशन (Oxidation)- जय ल्युब्रिकेंट गर्म हवा के संपर्क में आता है तो ऑक्सी डाइज हो जाता है। इससे तेल गाढ़ा हो जाता है जिससे तेल के बहाव में कमी आती है।
  6. वोटेरिलिटी (Votarility) – वाष्पीकरण में ल्युब्रिकेंट कम उड़ना चाहिए बरना फ्यूल की खपत बढ़ जाएगी।
  7. भोतिक स्थिरता (Physical stability )- यह तेल का यह गुण है जिसके द्वारा तेल के भोतिक गुण स्थिर होने चाहिए। यह अधिक तापमान होने पर तेल भाप मे नहीं बदले और कम तापमान होने पर जमना नही चाहिए, तापमान मे बदलाव के साथ इसके गुण मे परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  8. रंग (Colour) –तेल प्राय: भिन्नभिन्न रंगो के होते हैं जैसेपीला, साल, हरा, नीला तथा भूरा इत्यादि भंच रूल के अनुसार उच्च ऊमाल बिंदु वाले ल्युब्रिकेंट का गहरा (Dark) रंग होगा।

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