चालक किसे कहते हैं? एक अच्छे चालक में क्या मुख्य विशेषताएँ होनी चाहिएं?

 

 चालक किसे कहते हैं? एक अच्छे चालक में क्या मुख्य विशेषताएँ होनी चाहिएं? 

 

  What is a conductor? What are the properties of a good conductor?

 

चालक (Conductor) – चालक वे पदार्थ हैं, जो अपने में से करंट (Electrons) को आसानी से प्रवाहित होने का मार्ग प्रदान करते हैं। इनका प्रतिरोध (Resistance) बहुत कम तथा सुचालकता (Conductivity) बहुत अधिक होती है।

इलैक्ट्रानिक थ्यूरी (Electronic theory) के अनुसार वे पदार्थ जिनके परमाणुओं के बाहरी पथ में स्वतन्त्र इलैक्ट्रान (Free electron) होते हैं, वे बिजली के अच्छे चालक (Good conductors) होते हैं। इनके परमाणुओं (Atoms) के अन्तिम चक्र में हमेशा चार से कम इलैक्ट्रान होते हैं। जिन पदार्थों के परमाणुओं के बाहरी पथों में केवल एक ही इलैक्ट्रान होता है, वे विद्युत के बहुत ही अच्छे चालक होते हैं क्योंकि इन स्वतन्त्र इलैक्ट्रानों का बंधन अपने न्यूक्लीयस के साथ कमजोर होता है। आसानी से इनका इलैक्ट्रानिक ड्रिफ्ट स्थापित किया जा सकता है।

 

जैसे-चांदी, तांबा एवं एल्युमीनियम आदि सभी धातुएं बिजली के अच्छे सुचालक हैं।

 

अच्छे चालक की मुख्य विशेषताएँ (Properties of a good conductor) :-

  • चालक की रजिस्टीविटी बहुत कम तथा कंडक्टिविटी बहुत अधिक होनी चाहिए।
  • यह आसानी से बाजार में उपलब्ध होना चाहिए।
  • इसकी कीमत उपयुक्त होनी चाहिए।
  • इसका पदार्थ तार खींचने योग्य (Ductile) तथा शीट बनाने योग्य (Mellable) होना चाहिए।
  • इसकी यांत्रिक शक्ति (Mechanical strength) संतोषजनक होनी चाहिए।
  • इसके जोड़ों को सोल्डर करना आसान होना चाहिए।
  • चालक का पदार्थ नरम (Flexible) होना चाहिए।
  • इस पर मौसम का प्रभाव कम होना चाहिए।
  • इसकी खिंचाव क्षमता (Tensile strength) अच्छी होनी चाहिए।

 

बिजली के कार्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख चालक (Common Conductors used in Electrical Engineering)

  • चांदी (Silver) –

चांदी बिजली का बहुत बढ़िया चालक है। इसकी रोधकता बहुत कम तथा चालकता लगभग 98% है। शुद्ध चांदी की रोधकता 20°C पर 1.64 µ2-cm है। इसका आरम्भिक मूल्य बहुत अधिक है, इसलिए इस पदार्थ का सामान्य प्रयोग सम्भव नहीं है। फिर भी इसका सम्पर्क बिंदुओं (Contact points), बिजली के यंत्रों/मीटरों, रीलों तथा अधिक करंट (High Current) लेने वाले स्टार्टरों में बहुत अधिक प्रयोग होता है। इसके सम्पर्क बिंदु अधिक देर तक ठीक कार्य करते हैं क्योंकि चांदी के पिघलने का अंक अर्थात् ग्लनांक (Melting point) बहुत अधिक है।

 

  • तांबा (Copper)-

तांबा बिजला का बहुत बढ़िया चालक है। चांदी की अपेक्षा इसकी चालकता 90% होती है, इसलिए चांदी से यह दूसरे नम्बर पर है। शुद्ध तांबे की रोधकता 20°℃ पर 1.72 µQ-cm है। इसकी आरम्भिक कीमत चांदी से बहुत कम होने के कारण इसका प्रयोग बहुत अधिक होता है। यह एक नरम धातु है। इससे तारें तथा शीटें आसानी से बनायी जा सकती हैं। इस पर वातावरण का असर भी कम होता है। इसका प्रयोग भिन्न- भिन्न प्रकार की तारों, केबलों, बस-बारों, अर्थ-पत्तियों, बिजली की मशीनों के लिए वाइंडिंग तारों आदि के लिए किया जाता है। तांबा ताप ऊर्जा का एक बढ़िया सुचालक है। इसे आसानी से सोल्डरिंग किया जा सकता है। इसकी यांत्रिक शक्ति संतोषजनक है। इन कारणों से तांबे के चालकों की बहुत महत्ता है, चाहे कम कीमत के कारण एल्युमीनियम इसका स्थान ले रहा है। तांबे के चालक निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

 

  • कठोर तांबे के कंडक्टर
  • एनील्ड कापर कंडक्टर

(i) हार्ड-ड्रान कापर कंडक्टर (Hard -drawn copper Conductor)- जब तांबे के चालक, इसे ठंडी अवस्था में डाई के साथ खिंचाई करके बनाए जाते हैं तो इनकी मजबूती तथा खिंचाव शक्ति (Tensile strength) में काफी बढ़ौतरी हो जाती है। इस प्रकार की ‘तारों’ का प्रयोग ओवर हैड लाइन्स (Over-head-lines) व अर्थिंग (Earthing) के कार्यों के लिए किया जाता है।

 

(ii) एनील्ड कापर कंडक्टर (Annealed Copper Conductor)-यदि तांबे को गर्म करने के पश्चात् पानी से ठण्डा किया जाए तो यह बहुत नरम अर्थात् एनील हो जाता है। इस स्थिति में इसे आसानी से मोड़ा जा सकता है। एनील किए गए तांबे की तारें तथा कंडक्टर बाइंडिंग के लिए प्रयोग की जाती हैं। हार्ड-ड्रान तांबे की रोधकता (Resistivity) 0.7 माइक्रो ओह्म प्रति इंच है तथा एनील्ड तांबे की 0.68 माइक्रो ओह्म प्रति इंच है।

 

तांबे के गुणों तथा बहुमुखी प्रयोगों के कारण ही तांबे को बिजली वालों का सोना कहते हैं।

 

  •  एल्युमीनियम (Aluminium) –

एल्युमीनियम भी विद्युत का अच्छा सुचालक है। इसकी सुचालकता तांबे की सुचालकता का लगभग 60% होती है एवं भार काफी कम होता है। शुद्ध एल्युमीनियम की रोधकता 20°C व 2.69 x 10-2 µ2-cm है। इस का वातावरण का असर बहुत अधिक होता है। कम भार, अधिक उपलब्धता तथा सस्ता होने के कारण एल्युमीनियम का प्रयोग तांबे के स्थान पर अधिक होने लगा है। ओवरहेड लाइनों की तारें एल्युमीनियम की प्रयोग की जाती हैं। सामान्य (Standard) कंडक्टरों में से एक स्टील की तार पार करवा कर इसकी यांत्रिक शक्ति बढ़ायी जा सकती है। तब इसे A.C.S.R. अर्थात् Aluminium conductors steel reinforced कहते हैं। आजकल फ्लोरोसेंट की चोकें, मोटरों के रोटरों की वाइंडिंग, ट्रांसफार्मरों, वैल्डिंग सैटों, ओवर हैड लाइनों, अंडर-ग्राऊंड केबलें आदि बनाने के लिए एल्युमीनियम का प्रयोग व्यापक रूप में किया जाता है। पहले इसके जोड़ सोल्डरिंग करने कठिन थे पर आजकल उत्तम प्रकार के फ्लक्स उपलब्ध होने से यह काम भी आसान हो गया है।

 

  • लोहा (Iron)- 

लोहे की सुचालकता तांबे से आठ गुणा कम होती है। इसकी तारें व शीटें आसानी से बनाई जा सकती हैं। लोहा चुम्बकीय रेखाओं को चलने के लिए बढ़िया रास्ता प्रदान करता है, इसलिए इसका प्रयोग विद्युतीय मशीनों की बाडी, कवर तथा शाफ्ट आदि बनाने में अधिक किया जाता है। इसकी यांत्रिक शक्ति (Mechanical Strength) बहुत अधिक है।

बिजली के उपकरणों (Electrical accessories) जैसे- I.C.T.P., I.C.D.P. स्विचों के ढांचे, स्टार्टरों के ढांचे, लाइटों के फ्रेम, कंड्यूट तथा जी. आई. पाइपें आदि बनाने के लिए लोहा व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है। स्टील की तार से एल्युमीनियम की तारों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम लिया जाता है। सस्ता तथा अधिक उपलब्धता के कारण बिजली के कामों में इसका एक विशेष स्थान है।

 

  • जी. आई. तारें (G.I. Wires)-

लोहे को आमतौर पर जल्दी जंग लग जाता है। हवा में आक्सीजन होने से आक्सीडायजेशन की क्रिया शीघ्र हो जाती है। जंग लोहे की आयु कम कर देता है। इससे बचने के लिए लोहे पर जस्ते की परत चढ़ा दी जाती है। इस विधि को गैलवेनाइजेशन(Galvanisation) कहते हैं। परत चढ़े लोहे को गैलवेनाइज्ड आयरन (Galvanised Iron) कहते हैं। G.I. तारों का प्रयोग ओवरहेड लाइनों, गार्ड तारों, अर्थ तार तथा स्टे तारों में किया जाता है। केबल की मकैनिकल ताकत बढ़ाने के लिए केबलों को G.I. पत्तियों से लपेटा (Armoured) जाता है।

 

  • पीतल (Brass)-

पीतल, तांबे तथा जस्ता धातु की मिश्रित धातु है। यह कठोर होती है। इसकी सुचालकता चांदी की तुलना में 48% है। इसे जंग नहीं लगता। पीतल का प्रयोग हर प्रकार के विद्युतीय उपकरणों के टर्मीनल बनाने के लिए बहुत अधिक किया जाता है। जैसे-स्विचों, होल्डरों तथा साकटों के टर्मीनल आदि। प्लेटों के नट-बोल्ट बनाने, ट्रांसफार्मरों के लम्बे कनैक्शन बोल्ट बनाने तथा विद्युतीय मशीनों की शाफ्टों का आकार सही करने के लिए पीतल की वैल्डिंग की जाती है।

  • इलैक्ट्रोलाइट्स (Electrolytes) –

शुद्ध पानी में आवश्यकतानुसार तेज़ाब मिलाकर बने घोल को इलैक्ट्रोलाइट कहते हैं। यहबिजली के चालक का कार्य करते हैं, इनमें से करंट की धारा प्रवाहित करके कई उपयोगी कार्य किए जाते हैं। जैसे-बैटरी चार्ज करना तथा इलैक्ट्रो प्लेटिंग करना आदि। कई प्रकार के प्राइमरी सैल बनाने तथा द्वितीय (Secondary) बैटरियाँ बनाने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।

  •  गैसें (Gaseous)-

बहुत सी गैसें जैसे-हीलियम, आर्गन तथा न्योन आदि बिजली की चालक होती हैं। कम तापमान पर इनकी रजिस्टेंस बहुत अधिक जबकि अधिक तापमान पर इनकी रजिस्टैंस बहुत कम हो जाती है। इसलिए इनका प्रयोग कई प्रकार के लैंपों व टयूबों को बनाने में किया जाता है।

 

  • टंगस्टन (Tungsten) –

यह बहुत कठोर धातु है तथा इसके पिघलने का तापमान बहुत ऊँचा है। यह पदार्थ बहुत कम घिसता है। इसकी बारीक तारें बनाई जा सकती हैं, इसलिए इसका प्रयोग बल्ब तथा टयूबों के फिलामेंट बनाने के लिए किया जाता है। इसे हाई स्पीड स्टील बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। टंगस्टन को चुम्बक बनाने वाला स्टील तैयार करने में भी प्रयोग किया जाता है।

 

  •  टिन (Tin)-

टिन का पिघलने का बिन्दु (Melting point) बहुत कम होता है। इस पर जंग (Oxidation) का कोई असर नहीं होता। इसका प्रयोग फ्यूज़ की तारें तथा भिन्न-भिन्न प्रकार का सोल्डर बनाने में किया जाता है। तांबे की तारों को टिनिंग करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

 

  • जिस्त (Zinc)-

जस्ता बिजली का एक अच्छा सुचालक है। यह शुष्क सैलों में कंटेनर बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। तब यह -ve प्लेट का भी काम करता है। लोहे को जंग से बचाने के लिए जस्ते की परत चढ़ाई जाती है, जिससे G.I. तारें तथा शीटें बनाई जाती हैं।

  • पारा (Mercury)-

पारा एक तरल धातु है। यह बिजली का बढ़िया सुचालक है। गर्म होने पर इसका वाष्पीकरण (evaporation) हो जाता है। इसका प्रयोग मर्करी लैंपों, फ्लोरोसेंट टयूबों, मर्करी स्विचों तथा मर्करी आर्क रैक्टीफायरों में किया जाता है। डी. सी. के फ्रैंटी टाइप एम्पीयर ओवर (Freanti-type ampere-hour) मीटरों में इसका प्रयोग करंट ले जाने के लिए तथा सम्पर्क बनाने के लिए किया जाता है।

 

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