कार्बुरेटर(Carburetor)
परिचय
कार्बुरेटर एक ऐसा यंत्र है जो कि पैट्रोल को फ्यूल पम्प से लेकर हवा के साथ वेपोराइज करके ठीक मात्रा में मिलाकर इंजन से इनटेक स्ट्रोक के अंदर सिलिंडर में भेजता है। इस हवा और पैट्रोल के मिश्रण जिनको चार्ज कहते हैं कम्प्रेशन स्ट्रोक में काफी दबा देते हैं और कम्प्रेशन स्ट्रोक के अंत में इसे स्पार्क प्लग द्वारा आग लगा दी जाती है जिससे गैसे फेलती है और पिस्टन को नीचे की ओर धकेलती है जिससे इंजन चल पाता है।
एक अच्छे कार्बुरेटर से उपरोक्त सभी सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिए। इनमें सबसे कठिन काम जो कार्बुरेटर को करना पड़ता है वह है हर एक स्पीड पर पैट्रोल और हवा को ठीक मात्रा में मिलाना। इंजन कभी धीमी गति से चलाया जाता है तो कभी तेज गति से जब धीमी गति से इंजन चल रहा होता है तो उस पर कोई लोड (Load) नहीं होता उस समय इंजन को ऐसे मिश्रण की आवश्यकता होती है जिसमें पेट्रोल की मात्रा कम हो। जब इंजन तेज गति से चलता है तथा उस पर पूरा लोड होता है उस समय इंजन को Rich Mixture अधिक पेट्रोल मिश्रण की आवश्यकता होती है। इंजन की हर स्पीड (गति) में मिश्रण के अंदर पैट्रोल व हवा की भाषा के अनुपात में अंदर रहता है। चार्ज द्वारा हवा व पैट्रोल का अनुपात आगे बताया गया है।
कार्बुरेटर में प्रायः कोन -कोन से कार्य होते हैं?
कार्बुरेटर में प्रायः तीन कार्य होते हैं-
- Mixing 2. Vaporisation 3. Automization
- Mixing – अलग अलग स्पीड और लोड के साथ कार्बुरेटर हवा और पेट्रोल का Mixing Chamber में Mix up होना Mixing कहलाता है।
- Vaporistaion – हवा व पैट्रोल का जो ऑटोमोईजेशन होता है यह गर्म होकर भाप में बदल जाता है वह क्रिया Vaporisation कहलाती है।
वोलेटिस्टी ऑटोमाईजेशन के बारे में विस्तार से नीचे वर्णन किया गया है।
वोलेटिल्टी (Volatility)- वोलेटिल्टी का अर्थ है कि पेट्रोल या कोई और ईंधन (फ्यूल) कितना जल्दी वेपोराईज हो पाता है कुछ ऐसे फ्यूल हैं जैसे कि ऐल्कोहल और पैट्रोल जो सामान्य टेम्प्रेचर पर वैपोराईज हो जाता है लेकिन डीजल ऑयल कम वोलेटाईल होने के कारण कमरे के टेम्प्रेचर मे वेपोराईज नहीं होता। इंजन को जल्दी स्टार्ट करने के लिये हाई वोलेटाईल फ्यूल की आवयश्कता है लेकिन इतना हाई वोलेटाईल फ्यूल भी नहीं होना चाहिए कि वह कार्बुरेटर में पहुंचने से पहले ही वैपोराईज हो जाये नहीं तो एयर लॉक हो जायेगा और पेट्रोल आगे नहीं जा पायेगा।
- Automization – किसी तरल पदार्थ को बारीक कणों में तोड़ने को ऑटोमाइजेशन (Automization) कहते हैं।
ऑटोमाईजेशन (Automization) –जब किसी लिक्विड को बारीक बारीक कणों में तोड़ते हैं तो ऑटोमाईजेशन कहते हैं और यह फ्यूल को वेपर बनाने में सहायता करता है। उदाहरण आपने मच्छर मारने वाली दवाई स्प्रेगन को घर में प्रयोग की होगी। इसमें मच्छर मारने वाली दवाई लिक्विड फार्म में है, उसको हवा के प्रेशर से बारीक कणों में तोड़ा जाता है। इसी प्रकार कार्बुरेटर कार्य करता है।
कार्बुरेटर की क्रियाएँ (Functions of Carburetor) क्या है ?
एक अच्छे कार्बुरेटर को निम्नलिखित काम करने पड़ते हैं-
हर एक स्पीड पर-कम या तेज और हरेक भार पर कम या ज्यादा, पैट्रोल और हवा की ठीक रेशो को इंजन मे सप्लाई करता है। उसके अतिरिक्त निम्नलिखित स्थितियों में भी ईंधन संतुलन रखता है।
- स्टार्टिंग के समय या जबकि इंजन ठंडा हो, पैट्रोल की अधिक मात्रा इंजन को सप्लाई करें।
- जब इंजन गर्म हो जाए तो पैट्रोल और हवा की मात्रा ठीक कर लें।
- आइडल स्पीड पर या धीरे-धीरे चलने पर ज्यादा पैट्रोल सप्लाई करें क्योंकि उस समय पैट्रोल की खपत थोड़ी ज्यादा होती है।
- जब ज्यादा पावर की आवश्यकता हो, जैसा कि चढ़ाई चढ़ने पर या ज्यादा भार उठाने पर, तब ज्यादा पैट्रोल की सप्लाई करें।
कार्बुरेटर की मुख्य किस्में (Main Types of Carburators) कोन सी है?
कार्बुरेटर तीन प्रकार के होते हैं-

1. साईड ड्राफ्ट (Side draft) 2. अप ड्राफ्ट (Up-draft) 3. डाउन ड्राफ्ट (Down draft)
कार्बुरेटर काम कैसे करता है ?
कार्बुरेटर के काम करने का ढंग (Operation of a Carburetor)
जिस समय पिस्टन सक्शन स्ट्रोक में नीचे आता है तो उसके अंदर वैक्यूम बन जाता है जिससे बाहर की हवा इनलैट वॉल्व द्वारा सिलिंडर में जाती है। इस इनलैट पैसेज यानि मैनीफोल्ड पर कार्बुरेटर लगा रहता है। हवा इस कार्बुरेटर के अंदर से ही होकर सिलिंडर में जाती है। जब हवा कार्बुरेटर से निकल रही होती है उस समय वह वेन्चुरी के नियम अनुसार अपने साथ पैट्रोल को कार्बुरेटर के फ्लोट चैम्बर से खींचकर ले जाती है।
वेन्चुरी इफैक्ट (Venturi Effect) किसे कहते है ?
अगर हवा को एक सीधे पाईप द्वारा एक सिरे से गुजारें तो वह दूसरे सिरे पर उसी स्पीड से निकल

जायेगी । अगर दूसरी पाईप लें और मध्य में उसका मुंह छोटा कर दें , तो पाईप के मध्य में पहुंचकर जहां पर पाईप का मुंह छोटा है, हवा की स्पीड बढ़ जाती है क्योंकि उसी हवा को अब छोटे रास्ते में से गुजरना है। जब एकाएक स्पीड बढ़ती है तो हवा पर थोड़ा सा वैक्यूम पैदा (Create) हो जाता है अगर इस वैक्यूम वाले एरिया के अंदर एक छोटी-सी पाईप फ्लोट चैम्बर से मिलती हुई लगा दें तो जाहिर है पैट्रोल वेन्चुरी द्वारा पैदा किये हुए वैक्यूम से खिंचकर हवा में आ मिलेगा क्योंकि फ्लोट चैम्बर में प्रैशर वायुमंडल के प्रेशर जितना होता है। जब पैट्रोल इस पाईप द्वारा वेन्चुरी में आकर मिलता है तो वह हवा की स्पीड से छोटे-छोटे कणों में बदल जाता है जिसे ‘वेपोराइजिंग आफ फ्यूल कहते हैं।